Ancient Origins & Name
पूर्व-इतिहास: राठौड़ों के आगमन से पहले यहाँ विदावत राजपूतों का वास था, जो कालांतर में यहाँ से मिंगना चले गए। यह क्षेत्र जोधपुर रियासत का एक अहम हिस्सा रहा है।
अक्सर सवाल उठता है कि 'कसुम्बी' नाम क्यों पड़ा? इसका कारण यहाँ की वनस्पति और एक विशेष समाज है।
- छिपा समाज और रंगरेज: पुराने समय में यहाँ 'छिपा' (Chhipa) समाज के लोग रहते थे, जिनका मुख्य पेशा रंगाई का था।
- कसुमल घास: यहाँ के ताल में एक विशेष 'कसुमल घास' उगती थी। इसी घास को घोटकर 'केसरिया' (Saffron) रंग तैयार किया जाता था, जिसे राजस्थानी भाषा में 'कसुमल रंग' कहते हैं। इसी से साफे और पगड़ियाँ रंगी जाती थीं। इसी 'कसुमल' के नाम पर गाँव का नाम 'कसुम्बी' पड़ा।
The Foundation (स्थापना - 1841)
विक्रम संवत 1898 (सन् 1841 ई.) में बसंत पंचमी के पावन पर्व पर ठाकुर नारायण सिंह जी ने कसुमलगढ़ की नींव रखी। वे 'कांकछा तरनाव' से यहाँ पधारे थे।
रेत के टीले पर निर्माण: सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने गढ़ के लिए समतल जमीन नहीं, बल्कि एक बहुत ऊँचे 'रेत के टीले' (Sand Dune) को चुना। नींव के पास ही उन्होंने बाबा बालकनाथ जी की मूर्ति स्थापित की, जो गढ़ के आध्यात्मिक रक्षक हैं।
कसुम्बी तीन जागीरों का एकीकृत रूप है। स्थानीय भाषा में इसे 'त्रिवेणी' जैसा माना जा सकता है:
- कसुम्बी जाखड़ा (Kasumbi Jakhada): यह प्रमुख स्थान है जहाँ 'कसुमलगढ़' स्थित है। इसकी रेख 18,000 बीघा थी।
- कसुम्बी अलीपुर (Alipur): यह लाडनूं ठाकुरों (बाल सिंह जी) के अधीन था।
- कसुम्बी उपादरा (Upadra): यह तीसरी अलग जागीर थी।
- साथ ही एक नलिया बास भी इसमें शामिल है।
Architectural Engineering (वास्तुकला)
कसुमलगढ़ की बनावट (Design) और इंजीनियरिंग अपने आप में एक शोध का विषय है। इसमें सुरक्षा, मौसम और मजबूती का अद्भुत संगम है:
गढ़ के कमरों में पत्थर की पट्टियाँ (Slabs) नहीं डाली गई हैं। यहाँ 'धोळा की छत' (गुंबददार/Vaulted) तकनीक का प्रयोग हुआ है। इनकी ऊंचाई काफी अधिक है, जिससे भीषण गर्मी में भी कमरे वातानुकूलित (Cool) रहते हैं।
मुख्य पोल (Main Gate) की छत में 'रोहिड़ा' (Rohida) की लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है, जिसे मारवाड़ का सागवान कहते हैं। यह 'इंटरलॉकिंग' तकनीक से बिना सीमेंट के फँसाई गई है। इसमें दीमक नहीं लगती और यह 180 साल से अडिग है।
निर्माण में स्थानीय खुदाई से निकले 'जारजा भाटा' और 'झाझड़ा भाटा' (Stones) का प्रयोग हुआ है। इनकी चिनाई चूने (Lime) से की गई है, जो सीमेंट से भी अधिक टिकाऊ है।
गढ़ में सुरक्षा के लिए 3 विशाल बुर्ज हैं। बुर्जों के साथ बने शाही कक्षों को 'रंग महल' (Rang Mahal) कहा जाता था। गढ़ मुख्य रूप से 2 मंजिला है, लेकिन एक हिस्से में तीसरी मंजिल भी बनी है।
- बड़ा चौक और तोड़े: गढ़ के बीच में एक विशाल चौक है जिसके चारों तरफ पत्थर के सुंदर 'तोड़े' (Brackets) लगे हैं।
- जनानी ड्योढ़ी: रानियों के निवास (जनानी ड्योढ़ी) के प्रवेश द्वार पर गुलाबी पत्थर की 'कुसुमेदार मेहराब' और सुंदर नक्काशी है।
- पिछला दरवाजा: गढ़ में आपातकाल या निजी उपयोग के लिए एक पीछे का दरवाजा भी मौजूद है।
Impregnable Defense (सुरक्षा तंत्र)
- संकरी सीढ़ियाँ (Narrow Stairs): गढ़ की सीढ़ियाँ जानबूझकर बहुत संकरी और खड़ी बनाई गई हैं। रणनीति यह थी कि एक बार में एक ही सैनिक ऊपर चढ़ सके, जिससे दुश्मन की भीड़ को आसानी से रोका जा सके।
- तीरकश (Tirkash/Loop-holes): दीवारों में जगह-जगह विशेष छेद (तीरकश) बने हैं। इनका उपयोग आड़ में रहकर दुश्मनों पर तीर या बंदूक चलाने के लिए होता था।
- कीलों वाला दरवाजा: मुख्य पोल (दरवाजे) पर लोहे की बड़ी-बड़ी कीलें (Spikes) लगी हैं ताकि हाथी या भारी टक्कर से दरवाजा तोड़ा न जा सके।
- गुप्त द्वार (Gop Dwar): गढ़ में एक गुप्त रास्ता (Secret Passage) था, जिसे 'गोप द्वार' कहते थे। संकटकाल में राजपरिवार इसका उपयोग करता था।
Tales of Valour (शौर्य गाथा)
ठिकाना कसुम्बी के इतिहास में ठाकुर रघुनाथ सिंह जी का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
- जोधपुर का आदमखोर नाहर: जब जोधपुर रियासत में एक आदमखोर नाहर (शेर) का आतंक छा गया और वह एक दुर्गम गुफा में छिप गया, तब ठाकुर रघुनाथ सिंह जी ने अदम्य साहस दिखाते हुए गुफा में घुसकर उसका शिकार किया।
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शाही सम्मान (The Royal Privilege): इस वीरता से प्रसन्न होकर जोधपुर महाराजा ने उन्हें दरबार में दाढ़ी और मूँछ रखने का विशेष सम्मान (इज्जत) बक्शा। साथ ही उन्हें एक बन्दूक भेंट की गई।
ऐतिहासिक महत्व: सन् 1707 ई. (औरंगजेब की मृत्यु) के बाद, मारवाड़ के महाराजा अजीत सिंह जी ने एक विशेष नियम लागू किया था जिसके तहत राठौड़ सरदारों को केवल मूँछ (गलमूँछ) रखने की अनुमति थी, दाढ़ी रखने की नहीं। ठाकुर रघुनाथ सिंह जी को इस सख्त शाही नियम से 'विशेष छूट' मिलना, दरबार में उनके अत्यंत ऊँचे कद का प्रमाण है।
Spiritual & Modern Kasumbi
- पाबूजी राठौड़ की भक्ति: ठाकुर साहब पाबूजी महाराज के अनन्य भक्त थे। उन्होंने गढ़ के पास मंदिर की स्थापना की। उनकी भक्ति और शक्ति इतनी थी कि वे हाथ पर 'अग्नि जोत' धारण करते थे।
- ठाकुरजी का मंदिर: ठिकाना परिवार द्वारा निर्मित यह मंदिर धार्मिक चेतना का केंद्र है। मंदिर की सेवा-पूजा स्वामी परिवार द्वारा की जाती है। प्रतिवर्ष जलझूलनी एकादशी (Jaljhulni Gyaras) के अवसर पर यहाँ से ठाकुरजी की भव्य सवारी (बेवाण) निकाली जाती है।
- सालासर बालाजी का संबंध: इतिहास बताता है कि मोहनदास जी महाराज असोटा गाँव से दो मूर्तियाँ लाए थे। एक मूर्ति सालासर धाम में स्थापित हुई और दूसरी मूर्ति कसुम्बी में स्थापित हुई।
- भभूता सिद्ध बाबा: सर्पदंश निवारण के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर भी ठाकुर परिवार की आस्था का केंद्र है। मूर्ति 'काली नाड़ी' से लाई गई थी।
- गणगौर की सवारी: कसुम्बी की सांस्कृतिक पहचान यहाँ का गणगौर पर्व है। हर साल गढ़ से गणगौर माता की भव्य सवारी और लवाजमा निकाला जाता है।
Mysteries & Lost Heritage
- खोई हुई रेलवे लाइन: एक समय था जब कसुम्बी और जसवंतगढ़ के बीच से अंग्रेजों के जमाने की रेलवे लाइन गुजरती थी। आज भी खेतों में उस पटरी के निशान (अवशेष) मिलते हैं।
- कचहरी और पर्चर: पुराने समय में न्याय व्यवस्था गढ़ के बाहर होती थी। ठाकुर साहब और गाँव के चौधरी बाहर बने फर्श (जिसे 'पर्चर' कहते थे) पर बैठकर आपसी सहमति से गाँव के फैसले करते थे।
Location & Legacy
गढ़ कसुम्बी के दर्शन हेतु मानचित्र (Map) का उपयोग करें:
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